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रूसी तेल पर अमेरिकी दबाव को लेकर रूस की दो टूक: "दोस्ती ऐसे नहीं होती"
भारत द्वारा रूस से तेल खरीद पर अमेरिका की नाराज़गी और दबाव को रूस ने अनुचित करार दिया है। भारत में रूसी मिशन के उप प्रमुख रोमन बाबुश्किन ने कहा कि भारत-रूस ऊर्जा सहयोग "बाहरी दबावों" के बावजूद जारी रहेगा और यह दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी का प्रमाण है।
बाबुश्किन ने कहा, “यह भारत के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, लेकिन हमें नई दिल्ली पर भरोसा है। दोस्त ऐसा व्यवहार नहीं करते जैसा वाशिंगटन कर रहा है।" उन्होंने अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए अतिरिक्त 25% टैरिफ की भी आलोचना की, जिसे रूसी तेल की खरीद के खिलाफ एक दंडात्मक कदम माना जा रहा है।
भारत के हित में है रूसी तेल खरीद
भारत का तर्क है कि उसकी ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हित और बाज़ार की जरूरतों के अनुसार तय होती है। फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब भारत ने रियायती दरों पर रूसी कच्चा तेल खरीदना शुरू किया। परिणामस्वरूप, रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, जिसकी हिस्सेदारी 2024-25 में 35.1% तक पहुँच गई, जो 2019-20 में सिर्फ 1.7% थी।
पश्चिमी प्रतिबंध खुद उन्हीं पर भारी: रूस
बाबुश्किन ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को "स्व-घाती" बताते हुए कहा कि इनसे वही देश अधिक प्रभावित हो रहे हैं जो इन्हें लागू कर रहे हैं। उनका कहना था कि वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और मूल्य स्थिरता के लिए भारत और रूस का सहयोग महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “किसी भी एकतरफा कार्रवाई से आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, मूल्य असंतुलन और विकासशील देशों की ऊर्जा सुरक्षा पर खतरा पैदा हो सकता है।”
"पश्चिम आलोचना करे तो समझिए आप सही हैं"
रूसी राजनयिक ने पश्चिमी आलोचना को सकारात्मक संकेत बताते हुए कहा, “अगर पश्चिम आपकी आलोचना करता है, तो समझिए आप सब कुछ सही कर रहे हैं।” उन्होंने भरोसा जताया कि भारत अपने दीर्घकालिक रणनीतिक हितों के तहत निर्णय लेगा और रूस के साथ ऊर्जा सहयोग जारी रखेगा।
बाबुश्किन ने यह भी बताया कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर यूक्रेन के हालात पर चर्चा की, जो इस बात का संकेत है कि भारत रूस के लिए एक अहम साझेदार है।